BREAKING NEWS

Monday, 11 December 2017

पद्मश्री डा. लालजी सिंह पंचतत्व में विलीन



डीएनए फिंगर प्रिंट के जनक ने पूरी दुनिया में किया था देश को गौरवान्वित 
   सिकरारा (जौनपुर)। पूरी दुनिया में भारत को गौरवान्वित करने वाले जौनपुर की माटी के लाल डीएनए फिंगर प्रिंटिंग के जनक महान वैज्ञानिक काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति पद्मश्री डा. लालजी सिंह सोमवार को पंचतत्व मेें विलीन हो गए। उनकी अंत्येष्टि काशी के मणिकर्णिका घाट पर की गई। मुखाग्नि उनके ज्येष्ठ पुत्र अभिषेक सिंह ने दी। अंत्येष्टि के समय मौजूूद सैकड़ों लोगों की आंखें नम हो गईं।
   हैदराबाद स्थित सेंटर फॉर सेल्युलर एण्ड माइक्रोबायोलॉजी (सीसीएमबी) के पूर्व निदेशक डा. लालजी सिंह चार दिन पहले गृहगांव सिकरारा विकास खंड के कलवारी आए हुए थे। परिजन के साथ चार दिन बिताने के बाद तबीयत कुछ ठीक नहीं होने पर वह रविवार को हैदराबाद जाने के लिए बाबतपुर (वाराणसी) स्थित लाल बहादुर शास्त्री अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा पहुंचे। वहीं शाम करीब चार बजे दिल का दौरा पडऩे पर साथ गए परिजन ने उन्हें बीएचयू ले जाकर आईसीयू में भर्ती कराया। रात नौ बजे आईसीयू में ही उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके निधन की खबर लगते ही शोक की लहर छा गई। परिजन आधी रात के बाद दो बजे उनका पार्थिव शरीर लेकर गृहगांव आए। उनके अंतिम दर्शन के लिए लोगों का तांता लग गया। उनके दो पुत्रों में ज्येष्ठ आव्या कम्युनिकेशन इंटरनेशनल में आंंध्र प्रदेश के स्टेट हेड अभिषेक सिंह निधन की खबर लगने के बाद अपनी माता जी के साथ घर आ गए। उनके दूसरे पुत्र प्रवीन कुमार सिंह इंग्लैंड में रहते हैं। उनकी पत्नी और परिजन के करुण क्रंदन से लोगों का कलेजा चाक हो गया। अपराह्न सवा दो बजे उनका पार्थिव शरीर वाराणसी ले जाया गया। जहां मणिकर्णिका घाट पर अंत्येष्टि की गई। मुखाग्नि अभिषेक सिंह ने दी।
कलवारी गांव में साधारण किसान परिवार में करीब 70 साल पहले पैदा हुए डा. लालजी सिंह बचपन से ही मेधा के धनी थे। गांव के स्कूलों में इंटर मीडिएट तक की पढ़ाई के बाद उन्होंने टीडीपीजी कालेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। परास्नातक की डिग्री उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय से हासिल की। इसके बाद कोलकाता जाकर उन्होंने 1974 तक साइंस में फेलोशिप के तहत रिसर्च किया। छह माह के फेलोशिप पर इंग्लैंड गए डा. लालजी सिंह ने तीन महीने सेवा विस्तार लिया और नौ महीने बाद स्वदेश लौटे। जून 1987 में वे हैदराबाद के सीसीएमबी से जुड़ गए। सन 1998 से 2009 तक वह सीसीएमबी के निदेशक रहे। इसके पश्चात वह बीएचयू के कुलपति नियुक्त हो गए। कुलपति पद से अवकाश ग्रहण करने के बाद सन 2014 से अब तक वह सीसीएमबी से जुड़े रहे। कुलपति रहने के दौरान वह महज एक रूपया प्रतिमाह वेतन लेते रहे। अपने कार्यकाल में उन्होंने बीएचयू में साइबर लाइब्रेरी की स्थापना कराई। एलडी गेस्ट हाऊस का विस्तार कराया। सेंट्रल डिस्कवरी सेंटर की स्थापना कराई। ट्रामा सेेंटर का निर्माण कराया। अपनी माटी से उनका कितना गहरा लगाव था इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने गृहगांव कलवारी में पूर्वोत्तर भारत के आदिवासी इलाकों की प्रजातियों के इतिहास पर शोध के लिए जिनोम फाउंडेशन की स्थापना भी कराई।


अंतिम दर्शन कर श्रद्धांजलि के लिए तांता 
   सिकरारा (जौनपुर)। अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक पद्मश्री डा. लालजी सिंह के निधन की खबर से जनपदवासी स्तब्ध रह गए। उनके गृहगांव कलवारी आकर अंतिम दर्शन कर श्रद्धांजलि देने के लिए लोगों का तांता लग गया। श्रद्धांजलि देने वालों में पूर्व मंत्री, समाजवादी पार्टी के क्षेत्रीय विधायक पारस नाथ यादव, पूर्व सांसद धनंजय सिंह, जिला पंचायत अध्यक्ष राज बहादुर यादव, एमएलसी बृजेश सिंह प्रिंसू, पूर्व विधायक वरिष्ठ भाजपा नेता सुरेंद्र प्रताप सिंह, ईश्वर देव सिंह, सूर्य प्रकाश सिंह मुन्ना, पूर्व प्रमुख संतोष सिंह, टीडीपीजी कालेज के प्रबंधक अशोक कुमार सिंह, बिजली विभाग कर्मचारी संघ के नेता निखिलेश सिंह, पूर्वांचल विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के अध्यक्ष डा. समर बहादुर सिंह, प्राथमिक शिक्षक संघ के जिलाध्यक्ष अमित सिंह, पूर्व प्रमुख सुधाकर उपाध्याय, प्रधानाचार्य राजेश सिंह, डॉ. पीसी विश्वकर्मा आदि प्रमुख रहे। उनके निधन के शोक में क्षेत्र के लगभग सभी स्कूल-कालेज शोक सभा के बाद बंद कर दिए गए। 

Post a Comment

धर्म दर्शन

 
Copyright © 2017 आज प्रभात