मनुष्य ही मवेशी भी कांप उठे, शाम होते ही लोग घरों में हुए कैद
जौनपुर। शीतलहर और गलन ने शुक्रवार को लोगों का हाड़ कँपा दिया। धूप न निकलने से मनुष्य ही नहीं मवेशी भी ठिठुरने को मबजूर हो गए। सूर्यास्त के बाद अधिकतर लोग घरों में कैद हो गए। जाड़े के इस सीजन में शुक्रवार का दिन सबसे सर्द रहा। ठंड का प्रकोप बढऩे से ऊनी कपड़ों के साथ ही लकड़ी के कोयले की भी मांग बढ़ गई है। बाजार रौनक होने से कारोबारियों के चेहरे खिल उठे हैं। ठंड के कहर को देखते हुए शासन के निर्देश पर जिला प्रशासन ने इंटर मीडिएट तक के स्कूलों को पांच दिनों के लिए बंद कर दिया है।
मंगलवार को शुरु हुई कड़ाके की ठंड गुरुवार को खिली धूप निकलने से कम हो गई लेकिन शुक्रवार को शीतलहर, गलन और कोहरे ने अबकी के जाड़े का नया रिकार्ड बना दिया। दिन भर सूर्य बादलों के बीच छिपा रहा। एक बार भी भगवान भास्कर अपना तेज बिखेर नहीं सके। लगन और ठंड के कहर से बचने के लिए लोगों ने अधिक से अधिक वस्त्रों को शरीर पर लाद लिया। जगह-जगह लोग अलाव तापते दिखे।
हाड़ कँपा देने वाली ठंड से ऊनी और बचाव वाले अन्य वस्त्रों की मांग अचानक बहुत बढ़ गई है। बाजार रौनक होने से कारोबारियों के चेहरे चमक उठे हैं। मोजे, जूते, जैकेट, शॉल, मफलर, इनर, ऊनी टोपियां, लकड़ी के कोयले आदि के खरीददारों के उमडऩे से इनके व्यापारियों का धंधा गरम हो गया है। ठंड के कारण देर रात तक गुलजार रहने वाले शहर के प्रमुख चौराहों पर ही रात नौ बजे के पहले ही सन्नाटा पसर गया। ठंड भले ही जुल्मी हो गई है लेकिन अब तक स्थानीय नगर निकायों और जिला प्रशासन द्वारा अब तक लोगों को राहत देने का कोई उपाय नहीं किया गया है। न तो पर्याप्त स्थानों पर अलाव जलवाए जा रहे हैं और न ही गरीबों और असहायों को कंबल वितरण किया जा रहा है। यह बात और है कि कुछ स्वयंसेवी संगठन और समाजसेवी लोग अपने स्तर से यथा सामथ्र्य गरीबों को कंबल और ऊनी वस्त्र, रजाई आदि बांट रहे हैं।
नहीं जले अलाव
डोभी (जौनपुर)। हाड़ कँपा देने वाली ठंड शुरु हो जाने के बाद भी अब तक क्षेत्र में कहीं भी अलाव का प्रबंध तहसील प्रशासन द्वारा नहीं किया गया है। लोग-बाग कहते हुए जा रहे हैं कि न जाने कहां गुम हो गई है अलाव की व्यवस्था। क्षेत्र के खुज्झी, मारिकपुर, बजरंग नगर, बीरीबारी, चंदवक, पतरहीं, कृष्णा नगर, कोईलारी ब्रह्मबाबा, मोढ़ैला, रतनूपुर आदि छोटी-बड़ी बाजारों में हर साल दिसंबर में जिला प्रशासन अलाव की व्यवस्था करता था। अब तक अलाव का प्रबंध न होने से दुकानदार और राहगीर ठंड से काँपते दिखते हैं। कुछ लोग तो यह कहते सुने गए कि लगता है कि प्रशासन कुछ मौतों के बाद अलाव जलवाएगा।
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