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Wednesday 29 November 2017

भारतकी संस्कृति है दृव्य संस्कृति : कामेश्वर उपाध्याय


कुटीर संस्थान का मनाया गया ८१वां स्थापना दिवस

जलालपुर। भारत वर्ष की संस्कृति एक दृव्य संस्कृति है। भारत वर्ष का व्यक्ति भोजन करने से पहले दरवाजे पर खड़ा होकर देखता है कि कोई व्यक्ति दरवाजे पर भूखा तो नहीं खड़ा है इसके बाद ही भोजन करता है। यह बाते बुधवार को कुटीर संस्थान चक्के के 81वें स्थापना दिवस के अवसर पर मुख्य अतिथि कामेश्वर उपाध्याय ने कही।
उन्होंने कहा कि वृक्ष बचेगा तो जंगल बचेगा, संस्कृति बचेगी तो देश बचेगा। संस्कृति और सभ्यता वाले देश में बदलाव हो रहा है जिसमे टीवी का सबसे ज्यादा योगदान है। इस देश मे मां के अपमान का बदला उसके बच्चे लेते है जैसे सीता के पुत्रों ने अश्वमेघ के घोड़े को पकड़कर मां का अपमान करने वालों को नतमस्तक होने पर मजबूर कर दिया था। यूरोप व अमेरिका की एकेडमिक भारत की तरफ मुख कर खड़ी है कि यह प्राचीन भारत वर्ष हमे क्या दे रहा है और हम अभी देने के लिए तैयार हो रहे है। आज विश्व जिस दिशा में जा रहा वह विनाश की ओर ले जा रहा है और एक देश विनास की तरफ ढकेलने के लिए तैयार बैठा है। गुरु प्रजा पति है जब यज्ञ करने जाते है तो अग्नि किसी के घर से नहीं माचिस से नही बल्कि मन्त्रो द्वारा शमी के लकड़ी से उत्पन्न की जाती है। इसलिए गुरु शिष्य को ऐसी शिक्षा दे कि वह अपनी चमक पूरे विश्व मे बिखेरे। कार्यक्रम को विशिष्ठ अतिथि प्रोफेसर अमलदारी सिंह, प्रधानाचार्य हरीश सिंह आदि ने सम्बोधित किया। इससे पूर्व संस्थान गीत व स्वागत गीत हर्षिता, रुचि, अनामिका, दीक्षा ने प्रस्तुत किया। संस्थान के प्रबंधक डा. अजयेंद्र दुबे ने आये हुए अतिथियों को स्मृति चिन्ह व अंगवस्त्रम देकर सम्मानित किया। इस मौके पर रमेशमणि त्रिपाठी, विद्या निवास मिश्र, प्रेमशंकर गुप्त, गोपीनाथ उपाध्याय, कृष्णदेव चौबे, रामआसरे विश्वकर्मा, हरिराम यादव, श्रीनिवास मिश्र, पंकज मिश्र आदि मौजूद रहे।

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