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Tuesday 26 December 2017

मंगलवार को पहली बार ठंड से काँपे लोग


गलन से हिले सभी, बहुत जरूरी होने पर ही घरों से निकले
ऊनी कपड़ों का बाजार गरमाया, कारोबारियों के चेहरे खिले 
   जौनपुर। इस सीजन के जाड़े ने मंगलवार को पहली बार लोगों को हिला कर रख दिया। हाड़ कँपा देने वाली ठण्ड और गलन से दिन भर लोग ठिठुरते देखे गए। सूर्यास्त के बाद बहुत जरूरी होने पर ही घर से निकले। इसी के साथ ही सर्दी के बचाव वाले वस्त्रों के कारोबारियों के चेहरे खिल उठे। ऊनी कपड़ों के बाजार रौनक हो गए।
   आम तौर पर जाड़े का मौसम नवंबर महीने के मध्य से ही शुरु हो जाता है लेकिन इस साल जाड़े ने दस्तक दी भी थी तो करीब महीने पर देर से। जाड़े का असर भी सुबह और शाम को ही दिखता था वह भी कोई बहुत ज्यादा नहीं। कड़ाके के जाड़े से बचाव में इस्तेमाल होने वाले मफलर, चमड़े के जैकेट, ऊनी टोपी, शॉल आदि आलमीरा और बाक्सों से लोगों ने निकाले ही नहीं थे। एक स्वेटर और ऊनी इनर से ही लोग जाड़े का सामना कर ले रहे थे। तड़के और देर रात ही कोहरे और ठंड का असर महसूस होता था। लोग तो यहां तक अंदाजा लगाने लगे थे कि इस साल जाड़ा वैसा नहीं पड़ेगा जैसा पड़ता था। मंगलवार को शुरु हुए कड़ाके के जाड़े ने लोगों को इस सीजन में पहली बार अपना तेवर दिखाया। सुबह जबरदस्त कोहरा था तो कड़ाके की ठंड और गलन भी थी। जाड़े के तेवर दिखाते ही लोग आलमीरा और बाक्सों में बंद ठंड से बचाव वाले वस्त्र निकालने को मजबूर हो गए। दोपहर करीब बारह बजे आसमान छटने पर धूप तो निकली लेकिन हाड़ कँपा देने वाली ठण्ड से राहत दिला नहीं सकी। शाम करीब चार बजे तक सूर्य और बादलों की लुका-छिपी चलती रही। लगन और ठंड के कहर से बचने के लिए लोगों ने अधिक से अधिक वस्त्रों को शरीर पर लाद लिया। जगह-जगह लोग अलाव तापते दिखे।
   हाड़ कँपाने वाला जाड़ा शुरु होते ही ऊनी और बचाने वाले अन्य वस्त्रों की मांग तेज हो गई। माथे पर हाथ धरे बैठे कारोबारियों के चेहरे खिल उठे। ऐसा होना स्वाभाविक भी था क्योंकि जाड़े के पूरी तरह असर न दिखाने से उन्हें डर सता रहा था कि खरीद कर रखे गया माल बिकेगा भी या नहीं। मंगलवार को मोजे, जूते, जैकेट, शॉल, मफलर, इनर, ऊनी टोपियां आदि के कारोबारियों के चेहरे खिल गए। खरीददारों के निकलने से बाजारों में रौनक छा गई। शाम होते ही शहर के भीड़-भाड़ वाले स्थानों पर भी आम दिनों की अपेक्षा काफी कम लोग नजर आए। खास तौर पर उम्रदराज लोग तो बहुत जरूरी होने पर ही घरों से बाहर निकले। सबसे ज्यादा परेशानी मरीजों और उनके तीमारदारों तथा उन्हें हुई जो देर रात यात्रा के लिए टे्रन या बस पकडऩे के लिए ठिठुरते हुए गए।

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